Tuesday, April 29, 2008

बिहार के मंत्री बिस्वाश का गला घोट रहे

बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने जब से मंत्रिमंडल मे फेरबदल किया है ,तब् से जिन मंत्रियों की छुट्टी हुई है वो लोग आपा खोबैठे है.और नीतिश पर ही हमला किए जा रहे हैं जो कहीं से तर्क संगत नही है. ये वो लोग है जो अभी भी बिहार की पुरानी सरकार के मानसिकता से ग्रस्त हैं। पल भर मे ही ये भूल गए की कितनी कुर्बानी और मेहनत की वज़ह से उनकी सरकार बनी है . लोगों ने बरे ही विश्वास के साथ नीतिश सरकार को जनाधार दिया था. और लोगों के विश्वास पर सरकार खरी भी उतर रही है. बिहार मे बरे पैमाने पर विकाश कार्य चल रहे है। लेकिन मंत्रियों के आचरण से सरकार की जनता के बीच किरकिरी हो रही है.मोनाजिर हसन जैसे लोगों से पूछा जाना चाहिए की उनकी ,पिछली पृष्ट भूमि क्या रही है। नेता अपने स्वार्थ की खातिर जन भावनाओं का अनादर कर रहे हैं.जिश विकाश और समृधि का सपना सरकार के मुखिया ने देखा था, उस पर ये पलीता लगाने पर तुले है।अगले चुनाव मे अभी ढाई साल बचे हैं.लेकिन ये कौन सा मुंह लेकर जनता के पास जायेंगे.असल मे इनलोगों को राज्य के विकाश की चिंता नही है। ये बस अपना विकाश चाहते है।अगर इसी तरह ये सब चलता रहा तो राज्य के विकाश का सपना जो लोगों ने देखा है, वो सपना ही ना रह जाय

Wednesday, April 23, 2008

मेरी लाश पर होगा बिहार का बंटवारा



बिहार से झारखण्ड को अलग हुए लगभग ८ साल होने को है.लेकिन जिस उद्दयेश और मकसद से झारखण्ड बना वो मकसद कामयाब होता नज़र नही आता. झारखण्ड के साथ -साथ ,छ्तीश्गढ़ और उत्तरांचल भी अलग हुए थे .लेकिन किसी राज्य मे स्थिरता कायम नही हो पा रही है। राज्य बटवारे का फार्मूला बिल्कुल फ़ेल हो चुका है। बिहार मे जब राज्य बटवारे की बात चल रही थी ,उस समय बिहार मे लालू की सरकार थी .जो बटवारे के खिलाफ मानी जाती थी.ख़ुद लालू भी इसे बीजेपी की साजिश करार देते थे.आप को याद होगा एक आम सभा मे लालू ने गाँधी मैदान मे भीर के सामने ये एलान किया था , की मेरी लाश पर बिहार का बटवारा होगा.इस घोषणा के कुछ ही दिनों बाद बिहार का बटवारा होगया. ये तो सभी जानते है ,की नेताओं की फितरत रही है अपने बयान से पलट जाना ,लेकिन पब्लिक की स्मरण शक्ति इतनी कमज़ोर नही होती है, की संवेदनशील बातों को भूल जाय .लेकिन उस समय का गणित शायद लालू को पता चल गया .क्योंकि एंटी लालू लहर दक्षिण बिहार से उत्तर के मैदानी इलाके की तरफ़ बढ़ता जा रहा था.इस का उदाहरण नीतिश कुमार की ७ दिनों की सरकार थी.दरसल मे बटवारे से पूर्व बिहार का आर्थिक और सामाजिक ढांचा परस्पर उत्तर और दक्षिण बिहार मे बटा था.उत्तर बिहार की अपेक्षा दक्षिण बिहार आर्थिक और सामाजिक रूप से ज्यादा बिकसित था। उत्तर मे सोना उगलने वाली ज़मीन थी तो,दक्षिण मे प्रचुर मात्रा मे खनिज पदार्थ .पूरे देश मे बिहार ही अकेला ऐसा राज्य था जिसमे हर प्रकार के साधन उपलब्ध थे.भूगोलिक रूप ऐसा किसी राज्य मे नही था.जैसे की उत्तर मे खेती लायक जमीन और दक्षिण मे खनिज और कल कारखाने .दक्षिण बिहार मूल रूप से आदिवासियों का इलाका था.वहाँ भी समस्याए थी, लेकिन इसका हल बटवारा नही था.बटवारा होने से दोनों राज्यों को क्षति हुई है .एक को खेती लायक जमीन से हाथ धोना परा, और एक को उद्योग और खनिजों से.आदिवासियों के लिए अलग प्रदेश का गठन किया गया था. लेकिन आज और अभी भी वो हासिये पर है .झारखण्ड मे स्वार्थी नेताओं की वज़ह से सरकार का कोई वजूद नही रह गया है.मैं पिछले दो साल जमशेदपुर मे रहा ,वहाँ के लोगो से बातचीत के क्रम मे मैंने इस मुद्दे पे लोगो का नजरिया लिया ,उनके चेहरे पे निराशा के बादल नज़र आए.यहाँ तक तो उनलोगों ने कहा की इससे अच्छे तो अविभाजित बिहार मे थे ,कम से कम टिकाऊ सरकार तो थी .नेता इस तरह भ्रष्टाचार मे तो ना डूबे थे .आज मधु कोरा की सरकार हमेशा अपनी सरकार बचाने के चक्कर मे रहती है.वो पब्लिक को क्या देखेगी। सारे विकाश कार्य बंद परे है.राज्य के २४ जिले मे २२ जिले नक्सल प्रभाबित है.जो बिहार से उन्हें उपहार सरीखे हासिल हुए है.वही हाल बिहार का भी है,बटवारे के बाद सारे उद्योग धंधे झारखण्ड चले गए ,बिहार उद्योग बिहीन हो गया.इस बटवारे से जनता को कुछ हासिल नही हुआ, सिबाए दुखो और तकलीफों के .नेताओं की चांदी जरूर हो गयी .

Saturday, April 19, 2008

क्रिकेट की मर्यादा से खिलवार


आखिरकार जिस क्रिकेट के नए बाजारीकरण स्वरुप का इंतज़ार लोगों को था, १८ अप्रैल से शुरू हो गया .क्रिकेट का जिसतरह से मार्केटिंग किया जा रहा है,ऐसे मी वह दिन दूर नही जब इस महान खेल की प्रतिष्ठा ,लोकप्रियेता धूमिल हो जायेगी .आज जिस प्रकार क्रिकेट के नाम पर मीडिया ,फिल्मी दुनिया और राजनितिक गठबंधन बना है उस से तो यही लगता है की सभी लोग इसका लाभ उठाना चाहते है. सबसे बरी बात तो ये है की ,जिसदेश के किसान खुदकुशी कर रहे है ,वही हमारे कृसी मंत्री शरद पवार ipl के उद्घाटन का जश्न मना रहे है. और सबसे हास्यास्पद बात ये है ,की क्रिकेट खेलने वाले देशो मे सभी के क्रिकेट बोर्ड सरकार के नियंत्रण मे है ,लेकिन लोकतांत्रिक कहलाने वाले हमारे देश का क्रिकेट बोर्ड पुरी तरह से एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी मे तब्दील है .इस बोर्ड के क्या संविधान है इसका खुलासा कभी नही हुआ .इस पर माननीय सुप्रीम कोर्ट भी टिपण्णी कर चुका है .आज कोई बता सकता है ,की बीसीसीआई की अभी तक वेबसाइट भी नही है.क्या कसूर है उन खिलारिओं का जो बिहार जैसे राज्यों से कभी चुने नही जाते.झारखण्ड जो की बिहार से अलग हुआ राज्य है,उससे धोनी कैसे राष्ट्रिय टीम मे पहुँच जाते है .बीसीसीआई की दोगली नीति के कारण कितने प्रतिभा शाली खिलारिओं का कैरिएर बरबाद हो गया अब तो आने वाले दिनों मे क्रिकेट का भगवान ही मालिक है.इस ipl का भूत इस महान खेल को बर्बादी के अंधेरे मे ले जायगा .फिल्मी हस्तियों का काम सिर्फ़ पैसा कमाना है,नकि इस खेल को बढावा देना .वो दिन दूर नही की इस ipl के भूत के कारण दुनिया भर मे क्रिकेट की लोकप्रियता मे कमी होगी .इस ipl का मकसद सिर्फ़ पैसा और पैसा है.शुरुआत होचुकी है ,बोली भी लग चुकी है .खिलाड़ी रोबोट ली तरह ख़रीदे भी जा चुके है .upa गवर्मेंट के गठबंधन की तरह .राजनितिक, फिल्मी, मीडिया , और कार्पोरेट जगत की माफियागिरी।

Monday, April 14, 2008

आम आदमी की कार


दोस्तों ,

आप तो जानते है की पिछले ऑटो एक्सपो मे टाटा की लख्ताकिया कार को प्रदर्शित किया गया ।

ये लगभग वैसा ही सपना था जो ,हम आम भारतीय देखते थे .अब ये सपना नही रह गया ,बल्कि हकीकत के आईने जैसा हम सब के सामने आ रहा है .बस सेप्टेम्बर तक का इंतजार है.जब आम भारतीय के पास अपनी कार होगी .कोई सोच भी नही सकता की 1 लाख रुपये मे कार मिलेगी .हर आम मध्यम वर्ग के सपनो की कार का आना भारतीय इतिहास मे स्वर्नाक्षारो मे लिखा जाएगा .हमने दिखा दिया की हमारी देसी कंपनी विश्व की सबसे सस्ती कार बना सकती है.इस कदम के लिए टाटा का स्वागत है .

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