महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के अध्यक्ष राज ठाकरे एक बार फिर हिन्दी के पीछे पर गया है .मुझे समझ में नही आता की उस मराठी अमानुष को हिन्दी की मिर्ची क्यों लगती है.मैं यहाँ देश और राज्यों की संविधान प्रदत अधिकार की बात नही लाना चाहता हूँ .क्योंकि ये आंकरे पेश करना माहिर लोगो का काम है. मैं ठहरा अनपढ़ बिहारी .लेकिन इतना जरुर कहना चाहूँगा, की ठाकरे [दोनों ठाकरे ] को बिहार आना चाहिए .उन्हें इतनी तो शर्म आनी चाहिए, की जिस हिन्दी को वो अधिकारिक भाषा कहते है. दरअसल वो हर भारतीय अपनी माँ की कोख से ही सीख़ कर आता है...........न की अमानुषों की बातो से .ठाकरे दोनों चाचा भतीजा को बिहार आना चाहिये .और आके देखना चाहिये की बिहार में चाचा भतीजा कैसे रहते है ?जो आदमी अपने परिवार का नही हुआ वो मराठी मानुषों का क्या होगा ?एक कहावत है बिहार में .........................की एक कुत्ता भी अपने घर में शेर होता है.पाठक समझ सकते हैं की मैं क्या कह रहा हूँ ?लेकिन वो ठठेरे {ठाकरे एंड कंपनी } नही समझ सकते क्योंकि उन्हें हिन्दी नहीं आती होगी ना .........................................
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